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________________ ( १०७ ) ४७. दशलक्षण धर्म [१] उत्तम क्षमा- दूसरे से कष्ट दिये जाने पर भी निर्बल हो या सवल हो, विलकुल क्रोध न करके शान्त व प्रसन्न रहना ! [२] उत्तम मार्दवज्ञान तप आदि में श्रेष्ठ होने पर सत्कार व अपमान किए जाने पर भी कोमल व विनयवान रहना-मान न करना । [३] उत्तम आर्जव – मन, वचन, काय की सरलता रख कर कपट के भाव को न आने देना । [ ४ ] उत्तम सत्य -- अपने श्रात्मोद्धार के लिए सच्चे तत्वों का श्रद्धान व ज्ञान रखते हुए सत्य वचन ही बोलना । [५] उत्तम शौच - लोभ को त्याग कर मनमें संतोष व पवित्रता रखनी । [ ६ ] उत्तम संयम - भले प्रकार पांच इन्द्रिय व मन को वश रखना तथा पृथ्वी आदि छः प्रकार के जीवों की रक्षा करनी । [ ७ ] उत्तम तप – अनशन उपवास श्रादि बारह प्रकार तप के पालने में उत्साही रहना । [ ८ ] उत्तम त्याग - मोह ममत्व न करके सर्व प्राणी मात्र को. अभयदान देना तथा पर प्राणियों को ज्ञान दान देना व अन्य प्रकार से उपकार करना । [8] उत्तम आकिंचन्य — सर्व परिग्रह त्याग कर यह
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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