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________________ ( १०६ ) व्रत है। क्योंकि धन धान्यादि परिग्रह के कारण हैं, इसलिए इनके भी त्यागने से परिग्रह त्याग होता है । इन पांचों वनों को जितना पाला जायगा उतना संवर होगा। . ४५. पांच समिति अहिंसा की रक्षा के लिए साधुजन नीचे लिखी पांच समितियों को पालते हैं: १. ईयर्यासमिति-दिनमें जन्तु रहित भूमि पर चार हाथ आगे देखकर चलना २. भाषा समिति-शुद्ध बचन निर्दोष बोलना ३ एषणासमिति-शुद्धभोजन जो गृहस्थ ने अपने कुटु. म्ब के लिए तैयार किया हो, उसमें से मिक्षारूप जाकर भक्ति से दिये जाने पर लेना ४. श्रादान निक्षेपण समिति-अपना शरीर व अन्य वस्तुं जो कुछ भी उठाना व रखना सो देख कर झाड़कर उठाना रखना ५. उत्सर्गसमिति-मल मूत्रादि जीव रहित स्थान पर करना। ४६. तीन गुप्ति १. मनोगुप्ति-मनकी चंचलता को रोककर उसे धर्मध्यान में लीन रखना, सांसारिक भावनाओं से अलग रखना। २. बचनगुप्ति-मौन रहना। ३. कायगुप्ति-शरीर का निश्चल रखना। असदभिधानमनृतम् ॥१४॥ अदत्तादानं स्तेयं ॥१५॥ मैथुनमब्रह्म ॥ १६ ॥ मूळ परिग्रहः ॥ १७ ॥ तत्वा० अ०७) ईयोभाषेषणादान निक्षेपणोत्सर्गाः समितय ॥५॥(तत्वा०म०६) सम्यग्योग निग्रहोगुप्तिः ॥ ४॥ (तत्वा००६)
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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