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________________ ( ७८ ) इन्हीं स्कन्धों के २२ भेद गोम्मटसार में कहे हैं, उनमें से पाँच प्रकार के स्कन्धों से हमारा ख़ास सम्बन्ध है जिनका वर्णन आगे है । ३२. पुद्गलमय पाँच शरीरों के कार्य संसारी जीवों के निम्न लिखित पांच तरह के शरीर होते है : श्रदारिक-- जो केन्द्रिय से ले मनुष्य और पंचेन्द्रिय तियंचों (पशुओं) तक के स्थूल शरीर है । वैक्रियिक- जो बदला जासके: यह देव और नारकियों का स्थूल शरीर है। आहारक - यह श्वेत रङ्ग का पुरुषाकार एक हाथ ऊँचा किसी तपस्वी मुनि के दशम द्वार मस्तक से निकल कर केवली महाराज के दर्शन को जाकर लौट आता है। } ये तीन शरीर श्राहारक वर्गणाओं से बनते हैं । तैजस-एक बिजलीमई सूक्ष्म शरीर है, जो सर्व संसारी जीवों के पाया जाता है । यह तैजस वर्गणाओं से बनता है । कार्मरण - यह पाप पुण्यरूप श्राठकर्म मई सूक्ष्मशरीर सर्वसंसारी जीवों के कार्मण वर्गणा से बनता रहता है। इस समय हमारे पास तीन शरीर हैं। श्रदारिक जिस के छूटने का नाम ही मरण है । तैजस और कार्मण ये प्रवाहरूप से साथ २ रहते हैं, मुक्ति होते हुए ही छूटते हैं ।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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