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________________ विषयानुक्रम १. पृष्ठभूमि और सामान्यावलोकन १-२० . कर्मभूमिका प्रारम्भ - १ सिद्धान्त-आगमकाल ११ आद्य तीर्थङ्कर २ शापकतत्त्व तीर्थङ्कर नेमिनाथ ४ कुन्दकुन्द और उमास्वाति २३वें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ ५ पूज्यपाद अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान् अनेकान्तस्थापनकाल महावीर ५ समन्तभद्र व सिद्धसेन सत्य एक और त्रिकालाबाधित ६ पात्रकेसरी व श्रीदत्त जैनधर्म और दर्शनके मूल मुद्दे ७ प्रमाणव्यवस्थायुग जैन श्रुत ८ जिनभद्र और अकलंक दोनों परम्पराओंका आगमश्रुत ९ उपायतत्त्व श्रुतविच्छेदका मूल कारण ९ नवीन न्याययुग कालविभाग ११ उपसंहार ... . २. विषयप्रवेश २२-३७ दर्शनकी उद्भूति २२ जैन दृष्टिकोणसे दर्शन अर्थात् नय २८ दर्शन शब्दका अर्थ __ २३ सुदर्शन और कुदर्शन दर्शनका अर्थ निर्विकल्पक नहीं २५ दर्शन एक दिव्यज्योति दर्शनकी पृष्ठभूमि २६ भारतीय दर्शनोंका अन्तिम लक्ष्य ३१ दर्शन अर्थात् भावनात्मक दो विचारधाराएँ साक्षात्कार . २६ युगदर्शन दर्शन अर्थात् दृढ़प्रतीति २७ ३. भारतीय दर्शनको जैनदर्शनकी देन ३८-५२ मानस अहिंसा अर्थात् अनेकान्त दृष्टि ३८ स्याद्वाद एक निर्दोष भाषा-शैली वस्तु सर्वधर्मात्मक नहीं ३९ अहिंसाका आधारभूत तत्त्वज्ञानः अनेकान्तदृष्टिका वास्तविक क्षेत्र ४० अनेकान्तदर्शन मानस समताका प्रतीक ४० विचारकी चरमरेखा mr ० ० mr mr m mr my m : २ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.010044
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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