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________________ इ इगिनी -मरण - शास्त्र में कही गई विधि के अनुरूप क्रमश आहार का त्याग करक स्वाश्रित रहकर दूसरे के द्वारा वैयावृत्ति आदि नही करात हुए जो समाधि ली जाती है वह इड्गिनी-मरण नामक सलाराना है । इस प्रकार की सल्लखना लने वाले साधु उत्तम सहनन के धारी होते है । इच्छाकार- ऐलक, क्षुल्लक आदि उत्कृष्ट श्रापक व श्रावि के प्रति आदर पकट करना इच्छाकार कहलाता है। इनर - निगोद-जिन्होंने नम पयाय पहल कभी पायी फिर पुन निमा म उत्पन्न हुए हैं, ऐसे जीव चतुगति निगार या इतर-निगाः कहलान ह ।
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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