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________________ अष्टमूलगुण - 1 मद्य, मधु और मास का त्याग करना और पाच अणुव्रतो का पालन करना-ये श्रावक के अष्टमूलगुण हे । 2 मद्य, मधु, मास ओर पाच उदुम्बर फलो का त्याग करना यह श्रावक के अष्टमूलगुण है । 3 मद्य, मधु, मास का त्याग, रात्रि भोजन व उदुम्बर फलो का त्याग तथा देवदर्शन, जीव-दया ओर जलगालन- ये आठ श्रावक के मूलगुण माने गये है । अष्टाङ्ग - निमित्तज्ञान- दखिए निमित्तज्ञान । अष्टापद - यह केलाश पर्वत का दूसरा नाम है । यह भगवान ऋषभदेव की निर्वाणभूमि है। इस पर्वत पर सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्रो ने स्वर्णमय जिनालय वनाने के लिए दण्डरत्न से आठ पादस्थान बनाकर इसकी भूमि खोदना प्रारंभ किया था इसलिए इसका नाम अष्टापद प्रसिद्ध हुआ । अष्टाहिक - पूजा - देवी के द्वारा नन्दीश्वर - द्वीप में प्रत्येक वर्ष आषाढ, कार्तिक ओर फाल्गुन मास मे अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक आठ दिन निरतर भक्तिपूर्वक जो जिनेन्द्र प्रतिमाओ की पूजा की जाती है, उसे अष्टाहिक - पूजा कहते है । असत्य -मन-वचन-असत्य पदार्थ जैसे मरीचिका का जल आदि के विषय मे जानने या कहने मे जीव के मन और वचन की प्रयत्न रूप प्रवृत्ति को असत्य - मन-वचन योग कहते हैं । असभूत-व्यवहार-नय-भिन्न वस्तुओं के बीच सबध को बताने वाला असद्भूत व्यवहार नय है । जैसे - कर्म के निमित्त से होने वाली मनुष्यादि पर्याये, रागादि विकारी भाव और बाह्य वस्तुओ से सबध 92 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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