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________________ • वत्तीस अतराय - काक, अमेध्य, छर्टि (वमन), रुधिर, अश्रुपात, जान्वध परामर्श, जानुव्यतिक्रम, नाभ्यधोनिर्गमन, काकादिपिण्डहरण, पाणिपिण्डपतन, पाणिजन्तुवध, मासादिदर्शन, उपसर्ग, जीवसपात, भोजनसपात, उच्चार, प्रस्रवण, अभोज्यगृह प्रवेश, पतन, उपवेशन, सदश, भूमिस्पर्श, निष्ठीवन, उदरकृमिनिर्गम, अदत्तग्रहण, प्रहार, ग्रामदाह, पाद ग्रहण, करेणकिंचित्ग्रहण, रोधन, प्रत्याख्यान- सेवना, जन्तुवध • पंच परमेष्ठी • अर्हन्त - 46 मूलगुण 1. अनन्त चतुष्टय (4) अनन्त ज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख, अनन्तवीर्य 2. अष्ट प्रतिहार्य (8) अशोकवृक्ष, पुष्पवृष्टि, दुन्दुभि, सिहासन, दिव्य-ध्वनि, तीन- छत्र, चमर, प्रभामण्डल 3. अतिशय ( 34 ) जन्मकालीन - 1 मलमूत्र रहित शरीर का होना -2 पसीना रहित शरीर होना - 3 दूध के समान श्वेत रुधिर होना - 1 वज्रवृपमनाराच सहनन होना - समचतुरस्र सस्थान होना -6 अत्यत सुदर रूप होना जनदर्शन पारिभाषिक कांश: 278
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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