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________________ सुमेरु-यह मध्यलोक का प्रसिद्ध पर्वत है। जो विदेह क्षेत्र के मध्यभाग में स्थित है। यह पर्वत तीर्थकरी के जन्माभिषेक की पीठिका के रूप में प्रसिद्ध हे क्योंकि इसके शिखर पर पाण्डुक वन में स्थित पाण्डुक शिला आटि चार शिलाओ पर भरत, ऐरावत तथा विदेह क्षेत्र सम्बन्धी सभी तीर्थकरा का जन्माभिषेक होता है। इसके मेरु, महामेरु, मन्दर ओर सुदर्शन आदि अनेक नाम है। जम्बूद्वीप मे एक, धातकी खण्ड में दो ओर पुष्कराध द्वीप में दो ऐसे कुल पाच मेरु है। प्रत्येक मेरु पर सोलह जिनालय होने से पचमेरु सम्बन्धी कुल अस्सी जिनालय सुषमा-अवसर्पिणी के द्वितीय-काल ओर उत्सर्पिणी के पचम-काल का नाम सुषमा हे। अवसर्पिणी के इस द्वितीय काल मे मनुष्यो की ऊचाई दो कोस ओर आयु दो पल्य होती है। मनुष्य दा दिन छोडकर तीसरे दिन वहेडा के वरावर आहार ग्रहण करते है। इस काल में उत्पन्न वालक-बालिका का युगल शय्या पर सोते हुए पाच दिन व्यतीत करता हे फिर शेष सभी योग्यताए क्रमश पाच-पाच दिन व्यतीत होने पर प्राप्त होती हे ओर पेतीस दिन मे पूर्ण योवन और कला से सम्पन्न हो जाता है। इसके अतिरिक्त शेष सभी बाते सुषमा-सुषमा काल के समान होती है। तीन कांडा-कोडी सागर प्रमाण इस सुपमा काल में मनुष्यो की आयु, वल, ऊचाई आदि उत्तरोत्तर घटती जाती है। उत्सर्पिणी के सुपमा नामक पचम काल मे मनुष्यो की आयु, वल, ऊचाई आदि क्रमश बढती जाती हे और शेष सभी वाते अवसर्पिणी क मुपमा नामक द्वितीय काल के समान है। सुपमा दुपमा-अवसर्पिणी के तृतीय काल और उत्सर्पिणी के जेनदर्शन पारिभाषिक कोश · 257
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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