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________________ सात्त्विक-दान-जिस दान से अतिथि का हित हो, जिसमे सपात्र का निरीक्षण स्वय दाता क द्वारा किया गया हो ओर दाता में श्रद्धा आदि समस्त गुण हा वह सात्विक-दान है। सादि-मिथ्यादृष्टी-सम्यग्दर्शन का प्राप्त करने के उपरान्त जो जीव गिरकर पुन मिथ्यादृष्टि हो जाता है उसे सादि-मिथ्यादृष्टी कहते है। साधक-जा श्रावक जीवन के अत में शरीर, आहार आदि से ममत्व छोडकर आत्म-शुद्धि के लिए समाधिमरण की साधना करता है उसे साधक कहते है। साधन-1 जिसकी साध्य के साथ अन्यथानुपपत्ति हे उसे साधन कहते है। आशय यह है कि साध्य के होने पर ही होना और साध्य के अभाव में नहीं होना-ऐसी साध्य के साथ जिसकी व्याप्ति हे वह साधन है। 2 जिस निमित्त से वस्तु उत्पन्न होती हे वह साधन है। इस कारण भी कहते है। साधारण-वनस्पति-जो एक शरीर वहुत जीवो का होता हे वह साधारण- शरीर कहलाता है। ऐसा साधारण-शरीर जिन जीवो का है वे साधारण-जीव कहलाते है। साधारण शरीर मे रहने वाले सभी जीवो का जन्म, मरण, श्वासोच्छवास ओर आहार आदि एक साथ होता है। जिस वनस्पति के आश्रित साधारण-जीव होते है वह साधारण-वनस्पति कहलाती है। प्रतिष्ठित-प्रत्येक-वनस्पति भी साधारण जीवो के द्वारा आश्रित होने के कारण उपचार से साधारण होती है। किसी वृक्ष की जड साधारण होती है, किसी का स्कन्ध, किसी की शाखाए, किसी के पत्ते, किसी के फूल, किसी के पर्व का 252 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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