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________________ जाता है उसे भी अनुपवास कहते है। अनुपसेव्य-व्यवहार-धर्म को मलिन करने वाली जो वस्तुए सज्जन पुरुषो के द्वारा सेवन करने योग्य नहीं है वे अनुपसेव्य कहलाती है। जैसे-गाय का मलमूत्र, लार, कफ, जूठन, शख-भस्म आदि। अनुप्रेक्षा-1 ससार, शरीर और भोग सामग्री के स्वभाव का बार-बार चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है। अनित्य, अशरण, ससार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, सवर, निर्जरा, लोक, वोधिदुर्लभ और धर्म-ये बारह अनुप्रेक्षाए है। यही बारह भावना भी कहलाती है। 2 जाने हुए अर्थ का मन मे अभ्यास करना अनुप्रेक्षा नाम का स्वाध्याय है। अनुभय-मन-वचन-सत्य और असत्य दोनो प्रकार के निर्णय से रहित पदार्थ को जानने या कहने मे जीव के मन वचन की प्रयत्न रूप प्रवृत्ति को अनुभय-मन-वचन योग कहते है। जैसे-'यह कुछ है'-ऐसा जानना या कहना। अनुभाग-बन्ध-कर्म के फल देने की सामर्थ्य को अनुभव या अनुभाग कहते है। ज्ञानावरणीय आदि कर्मो का जो कषायादि परिणाम जनित शुभ-अशुभ फल है वह अनुभाग बध है। वह जिस कर्म का जैसा नाम है उसके अनुरूप होता है। अनुमति त्याग-प्रतिमा-परिग्रह त्याग नामक नवमी प्रतिमा धारण करने के उपरात अपने परिवारजनो को या अन्य जनो को सासारिक कार्यो के सबध मे अनुमति अर्थात् सलाह आदि नहीं देने की प्रतिज्ञा करना, यह श्रावक की दसवीं अनुमति-त्याग-प्रतिमा कहलाती है। जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 15
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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