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________________ बडा या अन्य शरीर रूप करने के लिए आत्मा के प्रदेश शरीर से बाहर निकलते है वह वैक्रियिक- समुद्घात है। वैनयिक - जिसमे ज्ञान, दर्शन आदि पाच प्रकार की विनय का वर्णन किया गया है वह वैनयिक नाम का अङ्गबाह्य है । वैनयिक - मिथ्यात्व - सब मतो और सब देवताओ को एक समान मानना वैनयिक - मिथ्यात्व है | वैमानिक देव- जो विमानो मे उत्पन्न होते है वे वैमानिक देव कहलाते है । वैमानिक देव दो प्रकार के है-कल्पवासी और कल्पातीत । वैय्यावृत्त्य - 1 गुणीजनो के ऊपर दुख आ पडने पर उसके निवारणार्थ जो सेवा सुश्रुषा की जाती है वह वैय्यावृत्त्य नाम का तप है। आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष्य, ग्लान, गण, कुल, सघ, साधु और मनोज्ञ - इन पर विपत्ति आने पर वैय्यावृत्त्य करना चाहिए । रोगादि से व्याकुल साधु को प्रासुक आहार औषध आदि देना तथा उनके अनुकूल वातावरण बना देना यही वैय्यावृत्त्य है । 2 गुणीजनो के ऊपर दुख आ पडने पर निर्दोष - विधि से उनका दुख दूर करना वैय्यावृत्त्य - भावना है । यह सोलह - कारण भावना मे एक भावना है। व्यञ्जन- निमित्तज्ञान- शरीर मे स्थित तिल या मसा आदि को देखकर दुख-सुखादि को जान लेना व्यञ्जन- निमित्त ज्ञान है । व्यञ्जन - पर्याय - जो स्थूल है, शब्द के द्वारा कही जा सकती हे और चिरस्थायी है उसे व्यञ्जन- पर्याय कहते है । जैसे जीव की सिद्ध पर्याय या मनुष्य आदि पर्याय | 226 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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