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________________ उत्पन्न करन की इच्छा से विवाह की स्वीकृति दी गई है क्योंकि सस्कारवान सन्तान के द्वारा धर्म की परम्परा का निर्वाह होता है। विविक्त शय्यासन-रागद्वैप उत्पन्न करने वाले आसन या शय्या का त्याग करके निधि अध्ययन, ध्यान या ब्रह्मचर्य की सिद्धि के लिए साधु के द्वारा जो एकान्त स्थान पर शय्या व आसन ग्रहण किया जाता है वह विविक्त शय्यासन नाम का तप है। विवेक-1 जिस-जिस वस्तु के अवलम्बन से अशुभ परिणाम होते हे उसको त्याग देना अथवा उससे स्वय दूर होना विवेक नाम का प्रायश्चित है। 2 दोपयुक्त साधु को गण, गच्छ, द्रव्य या क्षेत्र आदि से अलग करना विवेक नाम का प्रायश्चित है। विशुद्धि-सातावेदनीय कर्म के वन्धयोग्य परिणाम का नाम विशुद्धि है। अथवा कषाय की मदता का नाम विशुद्धि है। विशुद्धि-लब्धि-साता-वेदनीय आदि शुभकर्मो के वन्ध योग्य परिणाम या असाता आदि अशुभ कर्मो के वन्ध के विरोधी परिणाम का नाम विशुद्धि हे उसकी प्राप्ति होना विशुद्धि-लब्धि है। विषय-इन्द्रियों के द्वारा जानने योग्य पदार्थ को विषय कहते है। पाच रस, पाच वर्ण, दो गध, आठ स्पर्श ओर सात स्वर ऐसे सत्ताइस भेद इन्द्रिय सम्बन्धी विषयों के हैं तथा अनेक विकल्प रूप एक विषय मन का है, इस प्रकार कुल विषय अट्ठाइस हैं। विसयोजना-अनन्तानुवधी क्रोध, मान, माया व लोभ को अन्य प्रकृति रूप अर्थात् अप्रत्याख्यान आदि बारह कपाय और हास्य आदि नो 222 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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