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________________ बहिरात्मा - जो जीव मिथ्यात्व के उदय से शरीर और आत्मा को एक मानता है वह बहिरात्मा है । बहु- अवग्रह - बहुत सी वस्तुओ को एक साथ जान लेना वहु- अवग्रह कहलाता है । जेसे- पाचो अगुलि को एक साथ जानना । बहुघात - जिनके सेवन से बहुत जीवो का घात होता है ऐसे कदमूल, आलू, मूली, गाजर, अजीर आदि बहुघात नामक अभक्ष्य है। बहुमान - वहुमान का अर्थ आदर या सम्मान है। मन को एकाग्र करके बडे आटर से जिनवाणी का स्वाध्याय करना बहुमान कहलाता है। बहुविध - अवग्रह - बहुत सी वस्तुओं को या एक ही वस्तु को बहुत प्रकार से जानना बहुविध अवग्रह कहलाता है। जैसे - गेहू, चना आदि बहुत प्रकार के धान्य को जानना । बहुश्रुत-भक्ति- जो मुनि द्वादशाङ्ग के पारगामी है वे बहुश्रुत कहलाते है । ऐसे बहुश्रुतवान के द्वारा उपदेशित आगम के अनुरूप प्रवृत्ति करना बहुश्रुत भक्ति कहलाती है। यह सोलहकारण भावना मे एक भावना हे बादर- काय - जिन जीवो का शरीर स्थूल अर्थात् प्रतिघात सहित होता हे वे बादरकाय है । अथवा जो दूसरे को रोके और स्वय भी दूसरे से रुके वह स्थूल या बादरकाय है । चादर - नामकर्म - जिस कर्म के उदय से जीव बादर-काय मे उत्पन्न होता हे वह वादर - नामकर्म है । बाल-तप-मिथ्यादृष्टि अज्ञानी जीव के द्वारा किया जाने वाला तप जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 177
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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