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________________ प्रत्यक्ष - ज्ञान- इन्द्रिय और मन की सहायता के विना जो स्पष्ट ओर विशद ज्ञान आत्मा मे होता है उसे प्रत्यक्ष - ज्ञान कहते हे । प्रत्यक्ष के दो भेट हे सकल ओर विकल । केवलज्ञान सकल- प्रत्यक्ष हे ओर अवधिज्ञान एव मन पर्ययज्ञान विकल- प्रत्यक्ष हे | प्रत्यभिज्ञान- 'यह वही हे ' - इस प्रकार के स्मरण को प्रत्यभिज्ञान कहते हे । आशय यह है कि पहले जिस वस्तु को देखा था उसे पुन देखने पर 'यह वही है' - इस प्रकार का प्रत्यभिज्ञान होता हे । प्रत्यभिज्ञान अनेक प्रकार से होता है जेसे- 'यह वही हे', 'यह उसके सदृश्य है', 'यह उससे भिन्न है' आदि । प्रत्यय-प्रत्यय शव्द के अनेक अर्थ है। प्रत्यय का अर्थ ज्ञान है । प्रत्यय का अर्थ श्रद्धा भी है । प्रत्यय शब्द हेतु या कारण वाचक भी है। जेनागम में प्रत्यय शब्द मुख्यत आस्रव व वध के कारणो के लिए प्रयुक्त होता है । मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय ओर योग यह पाच आस्रव व वध के हेतु या प्रत्यय कहलाते है । प्रत्याख्यान - भविष्य मे दोष न होने देने के लिए सन्नद्ध होना प्रत्याख्यान है । अथवा साधु के द्वारा आहार ग्रहण करने के उपरान्त निश्चित काल के लिए जो सब प्रकार के आहार का त्याग कर दिया जाता हे वह प्रत्याख्यान कहलाता है। यह साधु का एक मूलगुण है। इसके छह भद हे - नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल ओर भाव । अयोग्य नामो का उच्चारण नही करने का सकल्प लेना नाम प्रत्याख्यान हे । वीतरागी के सिवाय अन्य किसी प्रतिमा की पूजा नहीं करने का सकल्प लेना स्थापना- प्रत्याख्यान हे । अयोग्य आहार व उपकरण आदि ग्रहण 161 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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