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________________ पतन-आहार लेते समय यदि साधु मूळ आदि आने से भूमि पर गिर पडते है तो यह पतन नाम का अतराय है। पदस्थ-ध्यान-एक अक्षर से प्रारम्भ करके अनेक प्रकार के पचपरमेष्ठी वाचक पवित्र मत्रपदो का आलम्बन लेकर जो ध्यान किया जाता हे उसे पदस्थ-ध्यान कहते है जैसे-एकाक्षरी मत्र-ॐ, दो अक्षर वाला-अहँ या सिद्ध, चार अक्षर वाला-अरहत, पचाक्षरी मत्र-णमो सिद्धाण, नम सिद्धेभ्य आदि। पदानुसारी ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु अपने गुरु के उपदेश से एक बीज पद को सुनकर समस्त ग्रन्थ को जानने में समर्थ होते है उसे पदानुसारी ऋद्धि कहते हैं। पदार्थ-जो जाना जाये या निश्चय किया जाए उसे अर्थ या पदार्थ कहते है। मोक्षमार्ग मे जानने योग्य जीव, अजीव, आस्रव, बध, सवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप-ये नौ पदार्थ है। पद्मप्रभ-छठवे तीर्थकर । इनका जन्म इक्ष्वाकुवश के राजा धरण और रानी ससीमा के यहा हआ। इनकी आयु तीस लाख वर्ष पूर्व थी ओर शरीर दो सो पचास धनुष ऊचा था। सोलह पूर्वांग कम एक लाख पूर्व आयु शेष रहने पर इन्होने ससार से विरक्त होकर जिनदीक्षा ले ली। छह मास की कठोर तपस्या के फलस्वरूप इन्हे केवलज्ञान हुआ। इनके सघ मे एक सौ दस गणधर, तीन लाख तीस हजार मुनि, चार लाख वीस हजार आर्यिकाए, तीन लाख श्रावक और पाच लाख श्राविकाए थीं। इन्होने सम्मेदशिखर से निर्वाण प्राप्त किया। पद्मलेश्या-जो त्यागी हो, भद्र हो, सच्चा हो, उत्तम कार्य करने वाला 148 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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