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________________ होता है उसे जलगता-चूलिका कहते है। जलगालन-जल को उपयोग में लेने से पहले स्वच्छ सफंट दुहर छन्ने से छानना जलगालन कहलाता है। जल-जीव-जो जीव जलकायिक में उत्पन्न होने के लिए विग्रहगति में जा रहा हे उसे जल-जीव कहते है। जल्लौषधि-ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु के शरीर पर पसीने के माध्यम से संचित हुई धूल भी ओपघि रूप हो जाती है उसे जल्लौषधि-ऋद्धि कहते है। जाति-माता के वश को जाति कहते है। जाति नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय ओर पञ्चेन्द्रिय कहलाता हे वह जाति नामकर्म है। जातिस्मरण-अपने पूर्व जन्म की किसी घटना विशेष का स्मरण हो आना जातिस्मरण कहलाता है। जानुव्यतिक्रम-यदि साधु घुटने के वरावर ऊचे काप्ठ आदि को लाघ कर आहार के लिए जाए तो यह जानुव्यतिक्रम नाम का अन्तराय हे। जान्वधः-परामर्श-यदि कारणवश साधु आहार के समय अपने घुटने के नीचे हाथ से स्पर्श करें तो यह जान्वध परामर्श नाम का अन्तराय है। जिन-जिन्होंने काम, क्रोध, मोह आदि विकारो को जीत लिया हे वे जेनदर्शन पारिभाषिक कोश / 101
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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