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________________ उपन्यास की गति-विधिको अवगत करने के लिए इसका महत्त्व 'चन्द्रकान्ता सन्तति' से कम नहीं है। ___ कमलिनी, सत्यवती, सुकुमाल, मनोरमा और शरतकुमारी ये पाँच उपन्यास श्री जैनेन्द्रकिशोरने और भी लिखे हैं ; पर ये उपलब्ध नहीं है। इन सभी उपन्यासोमें धार्मिक और सदाचारकी महत्ता दिखलायी गयी है। प्रयोगकालीन रचनाएँ होनेसे कलाका पूरा विकास नहीं हो सका है। इस उपन्यासके रचयिता मुनि श्री तिल्कविजय हैं । आपका आध्यात्मिक क्षेत्रमे अपूर्व स्थान है। धर्मनिष्ठ होनेके कारण आपके हृदयमे धर्मानुरागकी सरिता निरन्तर प्रवाहित होती * रहती है । इसी सरिणीमे प्रस्फुटित श्रद्धा, विनय, उपकारवृत्ति, धैर्य, क्षमता आदि गुणोसे युक्त कमल अपनी भीनी-भीनी सुगन्धसे जन-जनके मनको आकृष्ट करते हैं । उपन्यासके क्षेत्रमे भी इनकी मस्त गन्ध पृथक् नही । वास्तवमे अध्यात्म विषयका शिक्षण उपन्यास-द्वारा सरस रूपमें दिया गया है। कडवी कुनैनपर चीनीकी चासनीका परत लगा दिया गया है। इस उपन्यासमे औपन्यासिक तत्त्वोंकी प्रचुरता है। पाठक आदर्शकी नीवपर यथार्थका प्रासाद निर्मित करनेकी प्रेरणा ग्रहण करता है। आजके युगमे उपन्यासकी सबसे बड़ी सफलता टेकनिकमे है। इस उपन्यासमे टेकनिकका निर्वाह अच्छी तरह किया गया है। आरम्भमे ही हम देखते हैं कि बीस-पच्चीस घुडसवार चले जा रहे है, उनमे एक धीरवीर रणधीर व्यक्ति है। उसके स्वभावादिसे परिचित होनेके साथ-साथ हमारा मन उससे वार्तालाप करनेको चल उठता है। इस युवककी, जिसका नाम रत्नेन्दु है, तत्परता जगलमे शिकार खेलनेके समय प्रकट हो जाती है । उसके धैर्य और कार्यक्षमता पाठकोंको उमंग और स्फूर्ति प्रदान करते है । रत्नेन्दुकी वीरताका वर्णन उसके बिछुड़े साथी नयपालद्वारा कितने सुन्दर ढगसे हुआ है
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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