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________________ २२६ हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन देवीसिंह थे। इस प्रत्यम कुल ७५५ दोहा चौपाई हैं। रचना स्वतन्त्र है, किसका अनुवाद नहीं हैं। इनका एक अन्य अन्य सिद्धान्तशिरोमणि भी बतलाया जाता है। मनोहरलाल या मनोहरदास-यह कवि धामपुरके निवासी थे। आर. साहके यहाँ इनका आश्रम था। सेठके सम्बन्धमें इन्होंने मनोरंजक घटना लिखी है। लेठको दरिद्रताके कारण वह बनारससे अयोध्या चले गये, किन्तु वहॉके सेटने सम्मान और प्रचुर सम्पत्तिके साथ वापस लौटा टिया । कब्नि हीरामणिके उपटेश एवं आगरा निवासी सालिवाहण, हिसारके जगदत्तमिल तण उसी नगरके रहनेगले गंगरानके अनुरोध 'धर्मपरीक्षा' नामक अन्यकी रचना संवत् १७०५ में की है। कहीं-कहीं बहुत सुन्दर है। इस ग्रन्थका परिमाण ३००० पद्य है। कविने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है। कविता मनोहर खंडेलवाल सोनी नाति, मृलसंघी मूल नाको सागानेर वास है। कर्मके उदयते धामपुरमै बसन भयो, सबसौं मिलाप पुनि सननन दास है। ब्याकरण छंद अलंकार कछु पब्यौ नाहिं, भाषा में निपुन नुच्छ बुद्धि का प्रकास है। बाई दाहिनी कछू समझे संतोप लीय, लिनी दुहाई ना निनही की आस हैं। जयसागर यह मारक महीचन्द्रक शिष्य थे। गापारनगरके भधारक श्री मल्लिभूषणकी शिष्यपरन्परासे इनका सम्बन्ध थ। इन्होंने हूँबड़ नामि श्रीरामा तथा उसके पुत्र अध्ययनार्थ 'सीताहरण कान्यकी रचना संन्त् १७३२ में की है। कविता साधारण कोटिकी है। मापा राजस्थानी है।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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