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________________ परिशिष्ट रामपुर वास नाकौं सुत सुखदेव सुधी, ताकी सुत किस्नसिंह कविनाम जानिये || तिर्हि निसिभोजन त्यजन व्रत कथा सुनी, तांकी कीनीं चौपाई सुभगम प्रमाणिये । भूलि चूकि अक्षरधर जौ वाको बुधजन, सोधि पढि वीनती हमारी मनि आनिये ॥ २२५ खडगसेन --- यह लाहौर के निवासी थे । इनके पिताका नाम लूणराज था । कविके पूर्वज पहले नारनोतमे रहा करते थे । वहाँसे आकर लाहोर में रहने लगे थे। इन्होने नारनोलमे भी चतुर्भुज वैरागी के पास अनेक ग्रन्थोका अध्ययन किया था । इन्होने सवत् १७१३ मे त्रिलोकदर्पणकी रचना सम्पूर्ण की थी । कविता साधारण ही है । उदाहरण वागड देश महा विसतार, नारनौल तहाँ नगर निवास | तहाँ कौम छत्तीसों बसें, अपने करम तणां रस ललै ॥ श्रावक बसै परम गुणवन्त, नाम पापडीवाल वसन्त । सब भाई मै परमित लिये, मानू साह परमगण किये । जिसके दो पुत्र गुणश्वास, लुणराज ठाकुरीदास । ठाकुरसीके सुत है तीन, तिनको जाणों परम प्रवीन । घड़ो पुत्र धनपाल प्रमाण, सोहिलदास महासुख जाण । रामचन्द - इन्होने 'सीताचरित' नामक एक विशालकाय हन्टीवद्ध चरित ग्रन्थ लिखा है, इस ग्रन्थकी लोकसख्या ३६०० है । यह रविपेणके पद्मपुराणके आधारपर रचा गया है। इसके रचनेका समय १७१३ है । कविता साधारण है । कविका उपनाम 'चन्द्र' आया है। शिरोमणिदास - यह कवि पण्डित गगादास के शिष्य थे । भट्टारक सकलकीर्तिके उपदेशसे संवत् १७३२ में धर्मसार नामक टोहा चौपाईबढ ग्रन्थ सिहरोन नगरमें रचा है। इस नगरके शासक उस समय राजा १५
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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