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________________ सिंहावलोकन २०९ गये हैं । इस शताब्दीकै रचयिताओंपर अपभ्रगका पूरा प्रभाव है । अनेक कवियो अपभ्रंश भाषामे भी काव्यग्रन्थोंकी रचना की है । यो तो अपभ्रश साहित्यकी परम्परा १७वीं शती तक चलती रही, पर इस शताब्दीके जैन स्वयिताओने हिन्दी भाषामें काव्य लिखना आरम्भ कर दिया था । विषयकी दृष्टिसे इस गतीके काव्योमे हिंसापर अहिंसाकी और ढानवतापर' मानवताकी विजय दिखलानेके लिए पौराणिक चरितोक रंग भरकर महापुरुषो के चरित वर्णित किये गये है । कलाकारोने काव्यकलाको रस, अलकार और सुन्दर लयपूर्ण छन्द तथा कवित्तो- द्वारा अलकृत किया है। अपभ्रशके कलाकारोंमे लक्खण कविका अणुव्रतरत्नप्रदीप; अम्बदेव सूरिका समररास; और राजशेखर सूरिका उपदेशामृत तरगिणी और नेमिनाथ फाग प्रसिद्ध काव्य ग्रन्थ हैं । हिन्दी भाषाके काव्योमे जम्बूस्वामी रासा, रेवतगिरि रासा, नेमिनाथ चउपई, उपदेशमाला कथानक छप्पय आदि काव्य प्रमुख हैं । यद्यपि इन ग्रन्थोमे काव्यत्व अल्प परिमाणमे और चरित्र तथा नीति अधिक परिमाण में है, तो भी हिन्दी काव्य साहित्यके विकासको अवगत करनेके लिए इनका अत्यधिक महत्त्व है । १४वीं शताब्दीम मानवके आचारको उन्नत और व्यापक बनानेके लिए सप्तक्षेत्र रास, सघपति समरा रास और कच्छुलि रासा प्रभृति प्रमुख रचनाएँ लिखी गयी है। १५ वीं शताब्दी में भट्टारक सकलकीर्त्तिने आराधनासार प्रतिबोध, विजयभद्र या उदवन्तने गौतम रासा, जिनउदय गुरुके शिष्य और ठक्कर माल्हेके पुत्र विणू ने ज्ञानपचमी चउपई और दयासागर सूरिने धर्मदत्त चरित्र रचा है। अपभ्रंश भाषामे महाकवि रहधूने पार्श्वपुराण, महेसर चरित्र, सम्यक्त्वगुणनिधान, सुकौशलचरित, करकण्डुचरित, उपदेशरत्नमाला, आत्मसम्बोध काव्य, पुण्यास्रवकथा और सम्यक्त्वकौमुदीकी रचना की है । कान्यकी दृष्टिसे रहधूके ग्रन्थ उच्चकोटिके है । ខ "
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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