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________________ मआत्मकथा, जीवनचरित्र और संस्मरण १३७ जीवन-चरित्रोसे भी अधिक लाभदायक आत्मचरित्र (Auto. biography ) है । पर जगबीती कहना जितना सरल है, आपबीती कहना उतना ही कटिन । यही कारण है कि किसी भी साहित्यमे आत्म कथामोकी संख्या और साहित्यकी अपेक्षा कम होती है। प्रत्येक व्यक्तिमें यह नैसर्गिक संकोच पाया जाता है कि वह अपने जीवनके पृष्ठ सर्वसाधारणके समक्ष खोलनेमे हिचकिचाता है, क्योंकि उन पृष्ठोंके खुल्नेपर उसके समस्त जीवनके अच्छे या बुरे कार्य नग्नरूप धारणकर समस्त जनताके समक्ष उपस्थित हो जाते हैं। और फिर होती है उनकी कटु आलोचना । यही कारण है कि संसारमे बहुत कम विद्वान् ऐसे हैं जो उस आलोचनाकी परवाह न कर अपने जीवनकी डायरी यथार्थ रूपमे निर्भय और निधडक हो प्रस्तुत कर सके। हिन्दी-जैन साहित्यमें इस शताब्दीमे श्रीक्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी और श्रीअजितप्रसाद जैनने अपनी-अपनी आत्मकथाएँ लिखी है। जीवन-चरित्र तो १५-२० से भी अधिक निकल चुके हैं। साहित्यकी दृष्टिसे संस्मरणोंका महत्त्व भी आत्मकथाओसे कम नहीं है, ये भी मानवका समुचित पथप्रदर्शन करते है। यह औपन्यासिक शैलीमें लिखी गयी आत्मकथा है। श्री क्षुल्लक गणेशप्रसाद वर्णीने इसमे अपना जीवनचरित्र लिखा है। यह इतनी रोचक है कि पढ़ना आरम्भ करनेपर इसे अधूरा - कोई भी पाठक नहीं छोड़ सकेगा। इसके पढनेसे यही मालम होता है कि लेखकने अपने जीवनकी सत्य घटनाओको लेकर आत्मकथाके रूपमे एक सुन्दर उपन्यासकी रचना की है। जीवनकी अच्छी या बुरी घटनाओको पाठकोंके समक्ष उपस्थित करनेमे लेखकमे तनिक भी हिचकिचाहट नहीं है। निर्भयता और निस्सकोचपूर्वक अपनी बीती लिखना जरा टेढ़ी खीर है, पर लेखकको इसमे पूरी सफलता मिली १. प्रकाशक : वर्णी-ग्रंथ-माला २२३८ वी, भदैनी, काशी।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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