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________________ ७ हिन्दी-जैन-गीतिकाव्य हरि-हर ब्रह्म पुरन्दरकी रिधि, मावत नहिं कोउ मान में। चिदानन्दकी मौज मची है, समता रसके पानमें ॥ हम० ॥ २॥ इतने दिन तूं नाहिं पिछान्यो, जन्म गंवायौ अनान में। भब तो अधिकारी है वैठे, प्रभुगुन अखय खजान में । हम० ॥३॥ गई दीनता सभी हमारी-प्रभु तुझ समकित दान में। प्रमुगुन भनुभवके रस आगे, आवत नहिं कोड ध्यान में ॥ ४ ॥ यशोविजयजीके पदोकी भाषा बड़ी ही सरस है। आत्मनिष्ठा और वैयक्तिक भावना भी इनके पदोंमें विद्यमान है। कवि भूधरदास कुशल कलाकार है। इन्होने गीति-कलाकी बारीकियों अपने पदोमे प्रदर्शित की हैं। यह स्थूलको छोड सूक्ष्म सौन्दर्यको व्यक्त .. करना चाहते है। यद्यपि बाह्य-सौन्दर्यका अपने भूधरदासके पदः * सूक्ष्म पर्यवेक्षण-द्वारा निरीक्षण किया है, किन्तु वह पारचार र स्थिरता प्रदान नही कर सका है। यही कारण ना है कि इनके पदोमें भावुकताके सहारे करुण रस और आत्मवेदनाकी भी अभिव्यजना हुई है। पदोमे शाब्दिक कोमलता, भावनाओकी मादकता और कल्पनाओका इन्द्रजाल समन्वित रूपमे विद्यमान है। इनके पदोका एक संग्रह 'भूघर-पदसग्रह' के नामसे प्रकाशित हो चुका है। इन पदोको सात वर्गोंमें विभक्त किया जा सकता है-स्तुतिपरक, जीवके अज्ञानावस्थाके परिणाम और निखार सूचक, आराध्यकी शरणके दृढ विश्वाससूचक, अध्यात्मोपदेशी, ससार और गरीरसे विरक्ति-उत्पादक, नामस्मरणके महत्त्व द्योतक और मनुष्यत्वकी पूर्ण अभिव्यक्ति द्योतक । प्रथम श्रेणीके पद जिनेन्द्रप्रमु जिनवाणी और जितेन्द्रिय गुरुके सवनोसे सम्बद्ध है। इन पदो कविने दास्य भावकी उपासना-द्वारा
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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