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________________ पुरातन कान्य-साहित्य १३ वीं शतीसे लेकर १९ वी शती तक रासा चरित्र और पौराणिक कथाओके रूपमें जैन साहित्यकार प्रबन्ध-काव्योका निर्माण करते रहे है। हिन्दी-जैन यद्यपि इन अन्योंमेंसे अधिकाश काव्योंकी वस्तु पुरासाहित्यके परवर्ती तन है या संस्कृत और प्राकृतके कथा-प्रन्योका पद्या प्रबन्ध काव्य नुवाद है, फिर भी आत्मद्रष्टा भावुक जैन कवियोने अपनी कल्पना-द्वारा सुनहला रङ्ग भरकर कलाको चमका दिया है। १३ वी शतीमे धर्मसूरिने जम्बूस्वामी रासा, विजयसरिने रेवंतगिरि रासा, विनयचन्द्रने नेमिनाथचउपई, १४ वी शतीमे सतोत्र रासा, अम्बदेवने सघपति समरा रासा, १५वी शतीमे विजयमढने गौतमरासा, १६वी शतीमे ईश्वरसूरिने ललितागचरित्र तथा इसी शताब्दीकी अज्ञात नामवाली रचनाएँ, यशोधरचरित और कृपणचरित एवं १७वी गतीमे मालकविने भोजप्रवन्धकी रचना की है। १८वी गतीको रचनाओमे भूधरदासका पार्श्वपुराण तथा पौराणिक आधारोपर विरचित हरिवत्रपुराण, पद्मपुराण, श्रीपाल चरित और श्रोणिक चरित आदि मुख्य है। मानवके अन्तर्द्वन्द्व, आत्मचिन्तन, पाप-पुण्यके फल, अन्तस्तलकी निगूढ भावनाओंके घात-प्रतिघात एवं कायोमे मस्तिष्क और हृदयके समन्वयको जितनी खूबी और सूक्ष्मताके साथ इन परवर्ती जैन प्रबन्धकारोने दिखलाया है उतनी खूबी और सूक्ष्मताके साथ इनका अन्यत्र मिलना असम्भव तो नहीं, पर कठिन अवश्य है। एक अहिसा तत्वकी भावना सर्वत्र अनुस्यूत मिलेगी। प्रबन्ध चाहे छोटे हो या बड़े, पर जैन कवियोने कथाके अनुपातका पूरा ख्याल रखा है। कथामें कहीं मन्थरता और कही लपक-झपक नहीं है, बल्कि सन्तुलनात्मक गति है। जिससे पाठक भावनाके उच्च धरातलपर सहनमे ही पहुँच जाता है। पाचपुराण और श्रीपाल चरित्र तो श्रेष्ठ प्रवन्ध काव्योकी श्रेणीम रखे जा सकते हैं। चरित्रॉम स्थिर और गतिमय दोनो ही प्रकारके चरित्र चित्रित है। पार्श्वपुराणम अत्यन्त सूक्ष्म पर्यवेक्षणसे काम लिया है, इसी कारण कविने सजीव चित्र
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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