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________________ ३६ हिन्दी - जैन साहित्य-परिशीलन जौं बालक कह तोतरि बाता । सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता ॥ हॅसिहहिं कूर कुटिल कुविचारी । जे पर दूपन भूपन धारी ॥ X X X भाव भेद रस भेद अपारा। कवित दोप गुन विविध प्रकारा ॥ कवित विवेक एक नहिं मोरे । सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे ॥ -- रामचरित मानस, बालकाण्ड इसी प्रकार ऋतु, काल, सन्ध्या, नगर, समुद्र, नदी, वन, यात्रा, नारी सौन्दर्य, विलाप, रनिवास, जलक्रीड़ा, विरह एव युद्ध आदि विषय, तथा छन्द, शैली आदि दृष्टियोसे 'पउमचरिउ' से तुलसीदास ने बहुत कुछ ग्रहण किया प्रतीत होता है । भविसयत्तकहासे भी तुलसीदासने विपय और से अनेक बाते ग्रहण की है । पाठक देखेगे कि समानता है— वर्णनशैलीकी अपेक्षानिम्न पद्योंमे कितनी सुणिमित्त जाभई तासु ताम । गय पयहिणंन्ति वायंगि सुति सहसहइ बाउ । पिय मेलावइ वामउ किलकिंचित कावएण । दाहिणउ अंगु दाहिण लोयणु फंदइ सबाहु । णं भणइ एण दाहिन काग सुखेत सानुकूल वह त्रिविध उदेवि साम ॥ काउ || कुलकुलड़ दरिसिङ मरण ॥ मनोण जाहु ॥ उसको सुन्दर शकुन दिखलायी पड़े । श्यामापक्षी उड़कर दाहिनी ओर आगया । बाई ओरसे मन्द मन्द वायु बह रही थी और प्रियतमसे मेल करानेवाली ध्वनिमे कौआ बोल रहा था । व्यवाने बाई ओर बोलना शुरू किया और दाहिनी ओर मृग दिखलाई पड़े । इसी भावकी कविवर तुलसीदासकी चौपाइयाँ देखिये सुहावा । नकुल दरस सब काहुन पावा | प्यारी । सघट सवाल भाव घर नारी ॥
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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