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________________ १४० हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन उदात्त भावनाके चित्र बडे ही संयत, गम्भीर और आदर्श उतरे हैं। दार्शनिक भाव-भूमिपर आत्मा और बड-बन्धनके विश्लेषणको जिस प्रकार सजाया-सँवारा है, वह महान् है । मानव हृदयकी दुर्बलताओं और शक्तियाँको इतना टटोला और परखा है, जिससे रूपोंमें तात्विक अभिव्यंजनाने नीरसता नहीं आने दी है। आत्मिक विधान स्वस्थ और सन्तुलित स्पर्म मानस सगोधनके लिए प्रेरणा तो देता ही है, साथ ही जीवनको कर्तव्य-मार्ग-रचनात्मक मार्गकी ओर गतिशील करता है। ___ आध्यात्मिक स्पक जैन कान्य-निर्माताओम महाकवि बनारसीदास और मैया भगवतीदासका नाम विशेष गौरवके साथ लिया जाता है। कवि बनारसीदासने नाटक समयसार, वरयै, सोलह तिथि, तेरह काठिया, ज्ञानपच्चीसी, अध्यात्मबत्तीसी, मोनपैड़ी, शिवपच्चीसी, भवसिन्धु चतुर्दशी, जानवावनी आदि रचनाएँ लिखी है। चेतन कर्मचरित्र, अक्षरबत्तीसी, मिथ्यावविध्वंसन चतुर्दशी, मधुविन्दुक चौपई, सिद्ध चतुर्दशी, अनादिबत्तीसिका, उपशमपच्चीसिका, परमात्मछत्तीसी, नाटकपच्चीसी, पञ्चेन्द्रियसंवाद, मनबत्तीसी, स्वमवत्तीसी एवं स्वावतीसी आदि रचनाएँ भैया भगवतीदासने लिखी हैं । इनम कुछका परिचय निम्न है यह एक उत्कृष्ट आव्यात्मिक रचना है। आत्मान्वेषर्कोको सरस कवितामें आत्म-तत्त्वकी उपलब्धि करनेकी सुन्दर अभिव्यनना इसमें निहित - है। कुशल कलाकारने चित्रकारके समान आत्मानु " भूतिम नाना कल्पनाओंका रंग लगाकर अद्भुत चित्र खींचनेका प्रयास किया है। यद्यपि कविने अपने इस ग्रन्थकी रचना आचार्य कुन्दकुन्दके समयसारके आधारपर की है, परन्तु रागवत्त्व, बुद्धितत्त्व और कल्पनातत्त्वका मिश्रण कर इसे मौलिकता प्रदान करनेमे तनिक भी कमी नहीं की है। प्रत्येक पद्यमे प्रवाह और माधुर्य वर्नमान है। सरस और कोमल शब्दोंका चयन करनेमें कविने अद्भुत सफलता पायी है। अनूठी उक्तियाँ और नवीन उद्भावनाएँ तो पाठकका मन बरवन ही नाटक प्रसार
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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