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________________ *â दौलत - जैनपदसंग्रह | - अन्तर, कीरति किरन पसारी । दोष- मलके कलंक अटंकित, मोहराहु निरवारी ॥ बंदों० ॥ २ ॥ कर्मावरैन- पयोदअरोधित, बोधित शिवमगचारी | गणधरादि मुनि उडुगन सेवत, नित पुनपतिथि धारी ॥ चन्दों० ॥ ३ ॥ अखिल अलोकाकाश - उलंघन, जासु ज्ञान उजियारी । दौलत मनसा- कुमुदनि-मोदन, जयो चरम - जगतारी !! वन्दों० ॥ ४ ॥ निरखत जिनचन्द्र - चंदन, स्वपरसुरुचि भाई । निश्खत जि० ॥ टेक ॥ प्रगटी निज आनकी, पिछान ज्ञान भानकी, कला उदोत होत काम, जामिनी पळाई । निरखत० ॥ १ ॥ सास्वत आनन्द स्वाद, पायो विनस्यो विषाद, आनमें अनिष्ट इष्ट, कल्पना नसाई । निरखत० ॥ २ ॥ साधी निज साधकी, समाधि मोहव्याधिकी, पाधिको विराधिकैं, राधना सुहाई । निरखत० ॥ ३ ॥ धन दिन छिन आज सुगुनि, चितें जिनराज अबै, सुधरे सब काज दौल, अचल सिद्धि पाई। निरखत० ॥ ४ ॥ १ दोषा रात्रि । २ पापरूपी कलंक । ३ कमौके आवरणरूपी वादकोंसे जो ढकता नहीं है । ४ तारागण । ५ मनरूपी कुमोदनीको हर्षित करनेवाला । ६ अंतिम तीर्थकर । ७ रात्रि |
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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