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________________ ७२ दश-वैकालिक-सूत्र | अथ पंचम अध्ययन प्रथम उद्देश । निर्जरादि- लुब्ध साधु विश्राम करिया । निम्नोक्त करिवे चिन्ता स्वहित लागिया || "अनुग्रह प्रकाशिया आमार उपर । यदि कोन साधुवर तपस्या - तत्पर ।। लइतेन किछु खाद्य आहार्य्य हइते । पारिताम भवार्णव आमि उत्तरिते ॥ ६४ भोजनेर काले साधु स्नेह-प्रीत-प्राण | करिवेक यथाक्रमे साधुके आह्वान || भोजनेच्छुक के थाकिले सेखाने । तत्पर हइवे साधु एकत्र भोजने ॥६५ निमन्त्रणे साधु खाद्य नाहि लय यदि । रागादि रहित हये त्यजि मक्षिकादि ॥ नीचे खाद्य ना फेलिया हरत मुख द्वारा । प्रकाश - प्रधान-पान खाइवे साधुरा ॥६६ शास्त्रोक्त विधाने प्राप्त मोक्षेर साधक । अपरेर जन्य कृत देहेर धारक ॥। तिक्त कटु अम्लयुक्त अथवा मधुर । कषाय लवणयुत भिक्षान्न साधुर ॥ समभावे पूत - मने साधक लइवे । मधु- घृत- समतुल्य भाविया खाइवे ॥६७ अरस विरस किम्बा व्यञ्जन संयुत । तद्रहित अकथने कथने अर्पित ॥
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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