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________________ दश-वैकालिक-सूत्र । चतुर्थ अध्ययन। प्राणिनाशे यत्नशीले ना दिवे प्रश्रय । सतत प्राणीर प्रति हइवे सदय ।। त्रिविध करण योगे थाकि आजीवन । ' कायमनोवाख्ये थाकि आमि अभाजन ।। 'करिणा वा कराइणा देई ना सम्मति । जीवहिंसा महापाप भावि दिवाराति ॥ जीवहिंसाकारी, आमि, आत्माके एखन । निन्दि गर्हि पापहते करि विमोचन ।। एसेछि प्रथम निते श्रेष्ठ महाव्रत । हिंसावृत्ति हते मुक्त हयेछि कथित ।। आज हते हवे मोर हिंसार निवृत्ति । हृदये आसिवे मोर अहिंसा प्रवृत्ति ॥१ मृषावाद - विनिवृत्तिरूप - महाव्रत । द्वितीय स्थानीय इहा आगम कथित ॥ मम पूज्य हे भगवन् ! दोषेर आकर । छाड़ितेछि मृषावाद सकल प्रकार ।। करिवेना साधु क्रोधे लोभे हास्ये भये। मृषावाद दोषावह ये कोन समये ॥ वलाइते पर द्वारा मिथ्यार भाषण।। भ्रमेओ कभुना साधु करिवे यतन ।। त्रिविधकरणयोगे आमि आजीवन । कायमनोवाक्ये कभु आमि अभाजन || .
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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