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________________ २६ दश-कालिक-सूत्र | चतुर्थ अध्ययन | घरमप्रज्ञप्तिपाठ मम हितकर | अतएव मोरे उहा वलुन सत्वर ॥ गुरु कन प्रिय शिष्य शुन मन दिया । लिव सकल कथा एवं विस्तारिया | केवल ज्ञानेर वले काश्यप श्रमण | महावीर तीर्थंकर सत्यपरायण ॥ षड्जीवनिकानाम बुझि अध्ययन | प्रकृत धरम तत्त्व करि निरूपण | वुझाइया देन सर्वे मार्जितभाषाय । धरमप्रज्ञप्ति पाठे ताइ चित्त धाय ॥ शुन शिष्य बलि सेइ जीवर प्रकार । छय रुपे जीव भवे करिछे विहार ॥ पृथ्वीका अपस्काय केह तेजस्काय । वायुवनस्पतिकाय केह त्रसकाय ॥१ आतपादि द्वारा पृथ्वी आहता निर्जीव । तदन्य पृथिवी हय सतत सजीव || अनेक जीवेर वास पृथ्वीर भितरे । भिन्न भिन्न आत्मा थाके जोवर शरीरे ॥ शीतातपे जल हय कखन निर्जीव । तङ्गिन्न सलिल हय. सतत सजीव ॥ अनेक जीवेर वास जलेर भितरे । . भिन्न भिन्न आत्मा थाके जीवेर शरीरे ॥
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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