SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दश-वकालिक-मूत्र । तृतीय अध्ययन। 360 निज गुरु वा धर्मेर करिवे पूजन । ना लइवे श्रावकेर विनीत भजने ॥ जाति कुल कम्मै आदि करिया ख्यापन । करिवेना साधुजन भिक्षार ग्रहण ॥ उष्ण जल सांधुगण पानार्थे लडवे । सचित्त शीतल जल वर्जन करिवे॥ पिपासा वा क्षुधार्स हइया कखन । ना करिवे पूर्व भुक्त द्रव्येर स्मरण ।। क्षुधाते रोगते साधु आक्रान्त यखन । ना लइवे श्रावकेर कखन शरण ii६ .अनाचीर्ण दोष सदा परोक्षा करिया। लंइवे सतत खाद्य अवस्था बुझिया। संजीव मूलक आंदा इक्षुखण्ड आर । करिवना भ्रमक्रमे साधुरा आहार ।। सट्टीमूल काँचाफल वीज साधुगण । करिवना वर्चकन्द जीवित ग्रहण ।। ग्रहणं करिले उहां साधुरा कखन । अंनाचोर्णदीपे हवे प.पेते मगन ७ निम्नस्थितं कथा साधु स्मरिया सतत । लवणैर व्यवहार हवे अवगत ।। आंछे एवं धराधामे विविध लवण । चिकित्सक रोग नाशे करेण ग्रहणं ॥
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy