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________________ १६ दम-वेकालिक-सूत्र द्वितीय अध्ययन । रथनेमि नामे ख्यात क्षेत्रिय नन्दन | राजीमतीमुखे शुनि संयम वचन ॥ विपथे चलिले करी अंकुश आघाते । यथा आने सुचालक निज हितपथे ॥ रथनेमि निजकर्मे करे अनुताप । राजीमती वाक्यवाणे घुचे याय पाप || चारित्रय धर्मेते न अतिस्थिरमति । चिरअनुरक्त हन संयमेर प्रति ॥१० विषय वासना हते दूरे थाका दाय । समस्त विपद् आने वासना धराय ॥ नरश्रेष्ठ रथनेमि विख्यात जगते । बनेते ॥ राजीमती उपदेश पाइया भोगज वासना मोह दुर्वार नेहारि । संयमो हलेन तिनि भमता पासरि ॥ एहेन दृष्टान्त हेरि पण्डित सुजन । विषय वासना त्यजि भोगमुक्त हन ॥११ तीथेङ्कर महापूज्य साधक याहारा । दियाछेन उपदेश हितार्थे ताहारा ॥ हमरि सेइ उपदेश त्यति स्वकल्पना । वलितेछि पूर्णरुप करिओ धारणा ॥ इति द्वितीय श्रामण्यपूविकाध्ययन समाप्त |
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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