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________________ दश-वैकालिक सूत्र | माननीय शिष्य सह कन्यार उपमा | बर्णित हयेछे अति संयमगरिमा !! पालने । पाँचटि समिति आर त्रिगुप्ति कषायेर परित्याग परम यतने !! पूज्य हय साधुवर भुवने सतत । वर्णित ॥ गुरुर शुश्रूषाफल हयेछे चतुर्थ उद्देशे आछे विनय समाधि । तीर्थङ्कर महावीर रचित सुविधि ॥ श्रुत तपः समाधिर प्रभाव विस्तार । ज्ञान योग एकाग्रता विविध आचार || गुरुर शुश्रूषा विधि समाधिर बल । वर्णित हयेछे सत्य जैन नीति फल ॥६ अध्ययन दशमेते हयेछे बर्णित । भाव साघुबर संज्ञा अति सुविस्तृत ॥१० प्रथम चूलिका धरे रतिवाक्य नाम । साघुरा पड़िया हवे सिद्ध मनस्काम ॥ प्रथम चूलिका मध्ये आछे सुउपाय | किरूपे संयम सदा स्थिर राखा याय ॥ दुःखेते उद्विग्न साधु स्वकर्त्तव्य च्युत । संयम त्यजिते शीघ्र यखन उद्यत ॥ अष्टादश स्थान तदा करिया मनन । संयमेते युक्त हन किरूपे तखन ॥ धर्मात्मागे किवा फल पाय साधुजन । उपमार प्रदर्शने सन्तापित हन ॥ 9
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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