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________________ दश-र्वकालिक-सूत्र । परिशिष्ट । रथनेमि ओ राजीमतीर उपाख्यान । मुसुल धाराय पथे वृष्टि आरम्भिल । राजीमती-देहवस्त्र सकलि भिजिल॥ अवशेपे कोनमते एकाकिनी हाय । लयेन आश्रय तिनि भीपण गुहाय ।। जनशून्या गुहा इहा भावि निज करे। शुकाइते निज वस्त्र क्षिपेन वाहिरे॥ अरिष्टनेमिर भ्राता संयम - तत्पर । गुहाते ध्यानस्त छिल भ्रमणेर पर ।। नग्न देहा राजीमती निरखिया तिनि । कामभावे विचलित हलेन अमनि ।। नेहारि ताहाके कांपे भीता राजीमती । लज्जास्थान करे ढाकि वसिलेन सती ।। भयभीता कुमारीके करिया दर्शन | काममत्त रथनेमि वलेन वचन ।। सुरूपे चन्द्र - वदने सुचारु-भापिणी । स्वामित्वे वरण कर मोरे अभागिनी ।। निर्भये उत्तर दाओ भूल पूर्व कथा । दोहे भुजि भोगसुख दूर कर व्यथा ।। मनुष्य जनम हय अतीव दुर्लभ । भोगपारे जैनमार्ग हइवे सुलभ ।। 11111
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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