SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दश वंकालिक सूत्र | . परिशिष्ट । रथनेमि ओ राजोमतोर उपाख्यान । वसुदेव - ज्येष्ठ भ्राता समुद्रविजय । पालन करेन राज्य उदार हृदय ॥ समुद्रविजय पत्नी शिवा पुण्यवती । प्रसव करेन एक पुत्र सुमूरति ॥ अरिष्टनेमि नामेते तिनि ख्यात हन । कालक्रमे पान तिनि सुन्दर यौवन || राजीमती कन्या सह अरिष्टनेमिर | विवाह प्रस्तावे यान केशव सुधीर ॥ शुनि वार्त्ता विवाहेर राजा उग्रसेन । प्रफुल्ल हइया अति केशवे वलेन ॥ आसिले थाय वर विवाहेर दिने । राजीमती समर्पिव उल्लसित-मने ॥ raft विवाहवार्त्ता प्रचार हइल | माङ्गलिक कार्य्य सबै आरम्भ करिल || शंखेर ध्वनिते काँपे प्रासाद राजार। उध्वनि देय नारी करे गृहाचार ॥ अरिष्टनेमिके देन सुन्दर भूषण । सज्जित करेन तारे वरयात्रि - गण ॥ हाती घोड़ा सैन्य सह शिपिकारोहणे । अग्रसर हुन तिनि विवाह भवने ॥ १७९
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy