SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देश-कालिक-सूत्र । दशम अध्ययन.। अलब्ध वस्तुर याचना-लोभते विरत। . . लामे ओ उहार रसे नाहि यिनि प्रीत ।। भावते विशुद्ध ह'ये गोचरी-प्रवण। संयमविहीन प्राण ना चान कखन ।। स्थिर चित्त, ऋद्धिस्तुति सत्कार पूजन । 'चाहेना ये साधु तिनि भाव भिक्षु हन ॥१७ ये साधु वलेना कसु अमुक कुशील। . क्रोधेर जनक वाक्य अथवा अश्लील ।। पापापुण्य-जन्य - दाह वेदना प्रखर । प्रत्येक आत्मार हय जानि यतिवर।। निज आत्मा सर्वगुणे उत्कृष्ट आमार। अभिमान एताश मने नाहि यार। ताहाकेइ नरगण करेनं पूजन। भाव साधु वलि भवे तिनि ख्यात हनं ॥१८ जातिमत्त रूपमत्त ना हयेन यिनि ।। लाभे ओ श्रुतेर ज्ञाने अप्रमत्त मुनि ॥ . सर्वविधः गर्व त्यजि धर्माध्याने रत। . साव भिक्षु वलि हन तिनि सुपूजित ॥१६ महामुनि श्लान्य यिनि विनय प्रधान । परहिते. उपदेश करेन प्रदान ।। स्थिर थाकि निज धर्मे अपरे उत्साहे। ' . करान सुस्थिर परें. धरमे आग्रहे ।।
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy