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________________ दश-वैकालिक-सूत्र। १४७ १४७ नवम अध्ययन । तृतीय उद्देश । आत्मज्ञाने निज आत्मा जाने येइ जन । रागद्व प-समज्ञान तिनि पूज्य हन ॥११ युवक अथवा वृद्ध सन्यासी श्रावक । नारी वा पुरुष जन किम्वा नपुंसक ।। काहाके करे ना निन्दा किम्वा अपमान । छेड़छेन सदा यिनि राग अभिमान । आगम-विधान - रत शुद्ध तपोधन । तिनिइ धराय सदा अति पूज्य हन ।।१२ शिष्य हते यिनि सदा लभिया सम्मान । करेन शिष्येर हिते. श्रुत ज्ञान दान ।। येमन जननी पिता कन्याके आपन । शिखाइया करि तार योग्यता वर्द्धन ॥ संसारेर सर्व - सुख - वृद्धिर कारण । गृहिणीर पदे यत्न करेन स्थापन ॥ सेइ रूप यिनि शिष्ये आगम शिक्षाय । पारदर्शी कराइया अशेष चेष्टाय ॥ आचार्य्यर श्रेष्ठ पदे वसान अचिरे। उपकारी सेइ गुरु धन्य चराचरे॥ ताश सम्मानपात्र गुरुके येजन । करेन सम्मान अति करिया यतन ॥
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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