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________________ १४४ देश - कालिक सूत्र । अथ नवम अध्ययन | 19 तृतीय उद्देश | अल्प यार वयःक्रम अविज्ञ आगमे । दीक्षा ज्येष्ठ हले तारे सकले प्रणमे || आगमे अधिक विद्या लभि शुद्धाचार । दीक्षा ज्येष्ठ्ये करे येवा नम्र व्यवहार ॥ गुरु- पूजारत यिनि सुसत्य वचन | पालेन गुरुर आज्ञा तिनि पूज्य हन ॥ ३ संयमेर भारवाही देह रक्षातरे । केवल भिक्षात येवा अभिलाष करे । ना राखि कारणे अन्यं सदा अनुराग । भिक्षालब्ध बस्तु करि नित्य समभाग ॥ परिचय नावलिया येवां भिक्षा लयं । विशुद्ध · आहार करें साधु महाशय || भिक्षान्ते कोन चिन्तारं ना हय उदय | अहङ्कार श्लाघाशून्यं हये ये हृदय ॥ तिनिइ धराय धन्य साधक सुजन । सकलेर निकटेइ सदा पूज्य हन ॥४ · , आहार आसन शय्या संस्तारक जल । अनेक यखन आसे साधुर संम्वल ॥ नेहारि प्राचुर्य्य यिनि सामान्य कल्पित । लइवारे अभिलाष करेन सततं ॥ ·
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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