SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૧૮ दध-कालिक सूत्र । नवमं अध्ययन Ainiston ! द्वितीय उद्देश 5• Me तथा तारा अविनीत - आत्मार प्रभावे । जन्म मृत्यु वीचि मध्ये घुरे, भवार्णवे ॥३ विनये विशेष- रूपे उपदेश पेये । कुपित हयेन यिनि अविनीत हये ॥ स्वर्गीय लक्ष्मीर हेरि गृहे आगमन । दण्ड द्वारा बाधा देन तिनि अभाजन ॥४ राजादि वाहक अश्व गज आदि यत । अविनये भार वहि दुःख पाय कत ॥५ राजादि वाहक अश्व गज आदि यत । विनय गुणेते ख्याति ऋद्धि पाय कत ॥६ अविनीत - आत्मा नारी पुरुष जंगते । जर्जरित हय कभु चावुक आघाते ॥ नाकादि कर्त्तितं हये कदाकार हय ।.. जीवन यापन करे अति दुखमय ॥७ अविनयी कटु वाक्य शुने सदा हाय । सर्व्वदा पीड़ित हय क्षुधा पिपासाय || अति दीन कान्तिहीन पराधीन तारा ।. देखायाय अविनये हय लक्ष्मी छाड़ा ॥८ सुविनीत आत्मा भवे नरनारी चय । सम्पत्ति मुख्याति सुख लभे दृष्ट हय ॥ .
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy