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________________ दश-वैकालिक सूब १११ सप्तम अध्ययन। कर्तित व्रणादि हेरि प्रयत्न सहित । छिन्न किम्वा शुधु छिन्न हइवे कथित ।। सुन्दरी कन्यका हेरि साधुरा वलिवे । दीक्षिता सुकन्या एइ पालनीया हवे ।। कृत कर्म हेरि साधु वलिवे तखन । कमहेतु एइ कार्य हयछे एमन ।। शरीरे काहार हेरि प्रहार दारूण । प्रगाढ़ प्रहार किम्वा गाढ़ साधु कन ॥४२ अन्तराय आदि दोप-प्रसंग-कारणे । निम्नरुपे वलिवे ना साधुरा कथने । स्वभावतः मनोरम इहा दृष्टिकोणे। बहुमूल्ये क्रीत इहा अतुल भुवने ॥ सर्वत्र सुलभ इहा बहुगुण युत। प्रीतिकर नहे इहा लोकेर वाच्छित ।।४३ "वलिव सकल कथा एखन उहाके । वल सव कथा तुमि एखाने आमाके” । वलिवेना एइरुप येहेतु कखन । करिते पारेना केह स्पष्ट उच्चारण ॥ स्वर व्यञ्जनादि योगे वक्तव्य विपय । धराधामे काहारओ वला साध्य नय ।। सेइजन्य प्राज्ञ कथा वुझिया देखिवे । . मृपावादादि सावध अवश्य त्यजिवे ॥४४
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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