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________________ १०२ दश-वैकालिक सूत्र | सप्तम अध्ययन | ककश वा पापपूर्ण सदा - कालव्यापी । मोक्ष - प्रतिकूल याहा सत्य ओ यद्यपि ॥ एहेन भाषाय उक्ति नीति. वहिर्भूत । कभु ना करिव धीर जैन - धर्मरत ॥४ आसितेछे एइ नारी गाहिछे सङ्गीत । तथामूर्त्ति भाषा रूपे हयेछे वर्णित ॥ तथामूर्त्ति भाषा किम्वा नहे तथ्यमय । वाक्य ये वा वले सेइ पापयुक्त हय ।। मिथ्या वाक्यं वला सदा अभ्यास याहार । तार कथा सुधी माझे कि बलिव आर ॥५ तथामूर्त्ति भांपा हय किन्तु सत्ययुत । पापेर कारण हय तथ्य - विरहित ॥ प्रान्त उहार निम्ने वर्णिव एक्षणे । मम्मार्थ बुझिने तार साधु निज ज्ञाने ॥ "संसारेर वहुविध विघ्नेर कारणे । याइव आगामी कल्य वलित्र सेवाने ॥ अवश्य हवे. कृत कार्य्यं टि आमार । कल्य वा करिव आमि समाप्ति इहार ॥ एंs साधु सेवारत धर्मपरायण 1 करिवे अवश्य सेवा आमार एखन" ॥६ भविष्यते शङ्कायुक्त, ये भाषा कथने । किम्वा भीतिप्रदा याहा, भूत वर्त्तमाने ॥
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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