SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ : -मालिक-सूत्र । अथ षष्ठ अध्ययन। आहार करिले पात्रे गृहीर कखन । परे गृही प्रक्षालने नाशे जीवगण.।। पुरः कर्म आहारेर प्रारम्भे सतत । पात्र.प्रक्षालने गृही नाशे जीव शत ।। एहेन दूषित कर्म घृणित . सवार। गृहि पाने साधुलोक करेना आहार ।।५३ आसन, पर्य्यक कुर्सी, गृहरथ-कल्पित । सिंहासन किम्वा मञ्च अति सुशोभित ॥ उल्लिखित द्रव्योपरि साधुरा कखनं । वसिवेना शुईवेना करिवे वर्जन ॥५४ तीथकर वाणी यारा पालने तत्पर । निर्गन्थ संयमी सदा सज्जन प्रबर।। आसन्दी पालक गदी वेतेर आसने। कभु ना वसिवे तारा सुखेर कारणे ॥५५ आसन्दी पर्यकं आदि आसन प्रचय । प्रकाश-रहित हय, जीवेर आश्रय ॥ उत्पीड़न घटे सदा बसिले आसने । क्षद्र क्षुद्र जीवदेर भवे सर्वक्षणे॥ बुमि मुनि दोष हेतु सिद्ध तपोधन । आसन्दी पालक आदि करेन वजन ॥५६ गृहस्थेर गृहे यदि वसे शुद्धाचार। मिथ्यात्व-अर्जने तार हय अनाचार ॥५७
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy