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________________ दश-वकालिक सूत्र। •** अर्थ षष्ठ अध्ययन। बणस्पतिकायगण-हिंसुक मानव । तद्राश्रित बहुविध दृश्यादृश्यसव ।। बहुविध त्रस-जीबदिगके सतत । हिंसा करे पापमति जगते सतत ॥४२ दुर्गति बर्द्धक, अति हिंसा दोष घोर । आचरि किरूप फल हइवे साधुर ।। बुझिम तार परिणाम साधु आजीवन । बनस्पति काये हिंसा करिवे वजन ।।४३ त्रिविध-करण-योगे संयत साधुरा । तपः समाहित-कायमनो वाक्य द्वारा॥ हिंसा ना करिबे कभु भ्रमे त्रस-काये । करिवे उहारे रक्षा मनप्राण दिये ॥४४ त्रस-काय जीवगण हिंसुक-मानव । तद्राश्रित बहुबिध घश्यादृश्य सब ।। वहुविध त्रसकाय दिगके सतत । हिंसा करे पापमति जगते नियत ।।४५ दुर्गति बर्द्धक, अति हिंसा दोष घोर । आचरि किरुप फल हइबे साधुर। बुझि तार परिणाम साधु आजीवन नस काय जीब हिंसा करिबे बजन । ४६ चारि प्रकारेर खाद्य, अभक्ष्य यतिर । बिरुद्ध सतत उहा आगम. विधिर ।।
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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