SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८८ दश-वैकालिकै-सूत्र । अथ षष्ठ अध्ययन 1 निर्जर परेर जन्य क्रोधभययुक्त । । बलिवेनां मिथ्या कथां हिंसके संयत ॥ अपरेर द्वारा कंभु अनृत भाषण | वला वेना साधुगण भ्रमेओ कखन ॥ १२ एजगते सर्व्व साधु कर्तृ के निन्दित । सर्वत्र सकले जाने भाषण अनृत ॥ अनृतं भांपणे हेय विश्वासेर नांश । साधु छाड़िबेक, मिथ्या कथन प्रयास ॥ १३ संचेतन याहा हय अचित्तं, अथवा । यांहा किम्वा मूल्यमापे अत्यल्पवहुवा ॥ दण्डे शोधने ताहा लंईवेना यति । विनादेशे कखनओ अति शुद्धमति ॥ पुर्वोक्त, अदत्त वस्तु, यति तपोधन । दोपकर, अपवित्र, वुझिया तखन ॥ निजे स्वीय प्रयोजने ना करे ग्रहण | ग्रहण कराते परे ना करे यतन ॥ परैरं ग्रहणे कभु ना देन प्ररेणा ग्रहणेर अनुमति काहार थाकेनां ॥ १५ दुर्गतिर हेतुभूत, ब्रह्मचर्य्यनाश | दुराश्रय, प्रमोद वा, पापेर विकाश ॥ ना करेन भ्रमक्रमे विस्मरि सुनीति । चारित्रातिचारे भीत, तपोरतं यति ॥ १६
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy