SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और ज्योतिपी देवों में तायत्तीसग और लोकपाल नहीं होते हैं, शेष तीन बोल ( इन्द्र, सामानिक, अग्रमहिपी) होते हैं। ये सब ऋद्धि परिवार से सहित होते हैं । आवश्यकता पड़ने पर वैक्रिय करके देवता देवी के रूप बना सकते हैं। २-अहो भगवान ! वैक्रिय करके कितना क्षेत्र भरने की इनमें शक्ति है ? हे गौतम ( अग्निभूति ) ! जुवती जुवाण के १ इन्द्रभूति २ अग्निभूति ३ वायुभूति ये तीनों सगे भाई और गौतम गोत्री होने से तीनों को गौतम करके चोलाया है। शास्त्र में यह पाठ है से जहाणामए जुबई जुवाणे हत्थेणं हत्थे गिरहेज्जा, चक्कस्स वाणाभी अरगा उत्ता सिया। अर्थ-जैसे जवान पुरुष काम के वशीभूत होकर जवान स्त्री के हाथ को मजबूती से अन्तर रहित पकड़ता है. जैसे गाड़ी के पहिये की धुरी आराओं से युक्त होती है इसी तरह देवता और देवी वैक्रिय रूप करके जम्बूद्वीप को ठसाठस भर सकते हैं। ___ कोई आचार्य उपरोक्त पाठ का छार्थ इस तरह से करते हैं जहाँ बहुत से लोग इकटे होते हैं ऐसे मेले में जवान पुरुष जवान स्त्री का हाथ पकड़ कर चलता है। इस तरह से जवान पुरुष के साथ चलती हुई भी जवान स्त्री पुरुष से अलग दिखाई देती है। इसी तरह वैक्रिय किये हुए रूप मूल रूप से ( वैक्रिय करने वाले से) संयुक्त होते हुए भी अलग अलग दिखाई देते हैं। जैसे बहुत से पाराओं से युक्त धुरी धन होती है और उसके । ४. वीच में पोलार विलकुल नहीं रहती । इसी तरह से वैक्रिय किये हुए रूप
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy