SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व उमका गहरा प्रभाव 'सरस्वती' के रूप-सौष्ठव, प्रचार तथा महत्त्व पर भी पडा। द्विवेदीजी के सम्पादन-काल में न केवल 'सरस्वती' का रूप-शृगार आकर्षक बन गया, अपितु उसकी ख्याति और महत्ता भी बढ़ गई। पाठकों की संख्या में वृद्धि हुई एवं हिन्दी के साहित्यसेवियों के बीच 'सरस्वती' में छपना गौरव की बात हो गई। आचार्य शिवपूजन सहाय ने 'सरस्वती' की तत्कालीन उन्नत दशा का वर्णन करते हुए लिखा है : "द्विवेदीजी के समय की 'सरस्वती' में जान थी। जीवन की चहल-पहल थी। सत्य की पिपासा से व्याकुल वह दुर्गम पर्वतों और दुरूह गुफाओं में अमृत-सलिल को डडने के लिए सदैव तत्पर थी। वह जीवन-संग्राम में शत्रुओं से मुकाबला करने के लिए सदैव खड्गहस्त रहती थी। वडे-बड़े महारथियों ने उसमे मोर्चा लिया,अपने तरहतरह के दांव-पेच दिखाये, हर तरह से पैंतरे बदले और तलवार चलाने के अपने जौहर से देखनेवालों को चकित भी कर दिया, लेकिन 'सरस्वती' की महावीरी गदा के नामने उनकी एक न चली।"१ सम्पादन के क्रम में द्विवेदीजी एवं उनकी 'सरस्वती' को अनेक प्रकार की समस्याओं एवं बाधाओं का सामना करना पड़ा। द्विवेदी जी की अनुशासनपूर्ण कठोर नीति एवं खरी समालोचनाओं से अनेक साहित्यिकों एवं समाज के महानुभावों की दृष्टि उनके ऊपर वक्र थी। 'सरस्वती' के बहिष्कार का आन्दोलन भी उनसे क्षुब्ध होकर कुछ लोगों ने चलाने का प्रयत्न किया था। परन्तु, न तो वे 'सरस्वती' को हिन्दीभाषी जनता के हृदय का हार बनने से रोक सके और न द्विवेदीजी को उनके महान् आदर्शो से डिगा सके। कुल मिलाकर, हम आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी द्वारा नन्नादित 'सरस्वती' को तत्कालीन समस्त साहित्यिक प्रवृत्तियों का केन्द्रबिन्दु मानकर द्विवेदीजी के सम्पादकत्व की विवेचना कर सकते हैं। तत्कालीन परिस्थितियों में 'सरस्वती' को रखकर ही हम द्विवेदीजी की सम्पादकीय उपलब्धियों का सही मूल्यांकन कर सकते हैं । उनकी सम्पादन-कला की महानता की चर्चा करते हुए डॉ० नत्यनसिंह ने लिखा है : __"भारतेन्दु-जीवन की पत्रकारिता के विकास को प्रोडना प्रदान करने में आचार्य द्विवेदी को विशेष सफलता मिली। एक लम्बे समय तक 'सरस्वती' का सम्मादन करके आने सन्मादन-कला का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया । विषन-चपन, लेखकों को प्रो लाहन, समय पर पत्र का प्रकाशन, सम्पादकीय गौरव-रक्षण और पत्र की नीति के अनुपालन का अनुपमेय निदर्शन आपने प्रस्तुत किया ।।२।। १. आचार्य शिवपूजन सहाय · 'शिवपूजन-रचनाव नी', खण्ड ४, पृ० १७१। २. डॉ० नत्थन सिंह : 'द्विवेदीयुगीन उसनधिमाँ', 'साहि-य-परिचय', आधुनिक साहित्य-अक, जनवरी १९६७ ई०, पृ. ३१ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy