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________________ सम्पादन-कला एवं भाषा-सुधार [ ८३ सत्पथ से विचलित होने का साधन न प्राप्त हो । सशोधन द्वारा लेखों की भाषा अधिःसख्यक पाटको की समझ मे आने लायक कर देता। यह न देखता कि यह शब्द अरबी का है या फारसी का या तुर्की का। देखता सिर्फ यह कि इस शब्द, वाक्य या लेख का आशय अधिकांश पाठक समझ लेगे या नहीं। अल्पज्ञ होकर भी किसी पर उनकी विद्वत्ता की झठी छाप छापने की कोशिश मैने कभी नही की। ४. 'सरस्वती' में प्रकाशित मेरे लघु लेखो (नोटो) और आलोचनाओ से ही सर्व साधारणजन इस बात का पता लगा सकते है कि मैने कहाँतक न्याय-मार्ग का 3 वलम्बन किया है । जान-बूझकर मैने कभी अपनी आत्मा का हनन नही किया, न किसी के प्रसाद की प्राप्ति की आकाक्षा की और न किसी के कोप से विचलित हुआ {...." तत्कालीन विषम परिस्थितियों मे हिन्दी के लिए एक अत्यन्त अध्यवसायी सेवक, एकनिष्ठ कर्मयोगी, बहुभाषाविज्ञ, साहसी महावीर, प्रखर आलोचक, कठोर अनुशासक एवं कुशल युग-नियन्ता सूत्र कारके महान व्यक्तित्वसे सम्पन्न सम्पादक की आवश्यकता थी। आचार्य द्विवेदीजी मे ये सब विशेषताएँ एक साथ ही उपस्थित थी। 'सरस्वती' के सम्पादन द्वारा आचार्य द्विवेदी ने हिन्दी-भाषा को परिष्कृत, मंजुल और शुद्ध रूप दिया, हिन्दी-साहित्य को आदर्श दिया, नीति दी, हिन्दी-पाटको को ज्ञान एवं आनन्द दिया, हिन्दी को निर्माणकारी लेखक दिए और स्वयं भी निरन्तर विविध विषयों पर लिखा। उनके द्वारा सम्पादित 'सरस्वती' को उन्नत पत्रकार-कला का नमूना कहा जा सकता है। वारतव मे, 'सरस्वती'-सम्पादक आचार्य द्विवेदी के साथ ही हिन्दीजगत् मे, प्रथमतः सन् १९०३ ई० मे आधुनिक सम्पादन-कला का प्रवेश हुआ। अपनी सम्पादन-नीति एव सम्पादन-सम्बन्धी आदर्शो के लिए द्विवेदीजी के सम्मुख कोई विकल्प नही था। वे बड़ी कठोरता से अपने नियमों का पालन करते थे। पं० देवीदत्त शुक्लर ने इस सन्दर्भ में एक पी-एच्० डी० लेखक महोदय के पास लिखे गये उनके एक पत्न का स्मरण किया है। उक्त लेखक महोदय ने अपनी एक रचना प्रकाशनार्थ भेजते हुए अनुरोध किया था कि लेख को सम्पादित करते समय उसमें कोई उर्दू-शब्द न जोड़ा जाय । द्विवेदीजी ने उक्त रचना को लौटाते हुए उन्हें उत्तर दिया कि 'सम्पादन के सम्बन्ध में मै किसी प्रकार की कोई शर्त स्वीकार नहीं करता।' इस तरह, द्विवेदीजी ने अपने आदर्शों का यथासम्भव बड़ी दृढता के साथ पालन किया। जिस तत्परता एव नियमबद्धता के साथ उन्होने अपनी सम्पादन-कला को संचालित किया, १. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'मेरी जीवनरेखा', 'भाषा' : द्विवेदी-स्मृति अंक, पृ० १५-१६ । २. द्विवेदी-अभिनन्दन-ग्रन्थ, पृ० ५४० ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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