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________________ [ ७६ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व मुक्त नहीं हो सकता कि उसका कार्य साहित्य के उपवन से पुष्पों को एकत्र कर केवल एक स्थान पर अथवा एक पात्र में रख भर देना है । फूल सुन्दर हैं या असुन्दर, उनकी गन्ध मानव समाज के लिए कल्याणकर है अथवा अहितकर और बस फूल वास्तविक हैं या कृत्रिम - यह सब देखना भी सम्पादक का कार्य है और यदि इसे वह सम्पन्न नही कर पाता, तो निस्सन्देह वह एक असफल तथा अधूरा सम्पादक है ।"१ इस प्रकार, समर्थ सम्पादक एक सुधारक भी होता है । भाषा, साहित्य एवं समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का प्रयास वह अपनी पत्रकारिता के द्वारा - करता है । इस कारण पत्रकारिता का कार्य एक महान् कार्य समझा जाना चाहिए । श्रीभारतीय ने ठीक ही लिखा है : “विदेश के उन्नतिशील देशों मे पत्रकार का व्यवसाय एक महत्त्वपूर्ण व्यवसाय - समझा जाता है, जिसमें केवल परिश्रमशील, उत्तरदायित्व को समझनेवाले लोग ही प्रवेश पाते हैं । जहाँ के पत्रकारों पर देश की बड़ी से बड़ी समस्याओं को सुझाने का भार रहता है, यदि वहाँ 'पत्रकार' एक उत्तरदायित्वपूर्ण उपाधि समझी जाय, तो इसे आश्चर्य न समझिए । २ पत्रकारिता के इस गौरवपूर्ण शीर्ष तक पहुँचनेवाले सम्पादक का निर्भीक एवं 'दृढव्रती होना आवश्यक है । वह समाज एवं साहित्य की जड़ता की समीक्षा करता है और विकास के मार्ग को प्रशस्त बनाता है। इस क्रम में निर्भयता ही उसकी सत्यवाणी ' का मुख्य बल होती है । श्रीअनन्तगोपाल शेवड़ के शब्दों में : "श्रेष्ठ और सुयोग्य सम्पादक समाज का नेता होता है । वह बहती हुई बयार के अनुसार अपने मत नहीं बनाता, प्रेयस् के पीछे नहीं भागता, बल्कि स्वतन्त्र बुद्धि और स्वतन्त्र चिन्तन के आधार पर निर्भीकतापूर्वक अपनी राय देता है और सदा श्रेयस् की ही उपासना करता है ।.... वह निर्भीक होता है, सार्वजनिक हित का आग्रही होता है, किन्तु वह उच्छृंखल नहीं होता, उसकी स्पष्टवादिता के पीछे लोकहित तथा सार्वजनिक कल्याण की गहरी भावना होती है । " ३ इन सारी विशिष्टताओं के सन्दर्भ में जिस विराट् सम्पादक - व्यक्तित्व का आभास मिलता है, वह उसके द्वारा समाज और साहित्य के लिए किये गये कार्यो के १. डॉ० हरिवंश राय बच्चन : 'पत्रकारिता के गौरव : बाँकेविहारी भटनागर, ' पृ० १०७ । २. श्रीभारतीय : 'लेखनी उठाने के पूर्व ', पृ० १७९-१८० । ३. डॉ० हरिवंशराय बच्चन : 'पत्रकारिता के गौरव : बाँकेविहारी भटनागर, ' पृ० ४३ |
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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