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________________ जीवनवृत्त एवं व्यक्तित्व [ ४७ (छ) कर्तव्यपरायणता : ___ अदम्य उत्साह, साहस, लगन और निष्ठा के साथ द्विवेदीजी ने प्रत्येक कार्य को अपनाया और कर्मक्षेत्र में विभिन्न बाधाओं को झेलकर, विभिन्न शिलाओं को हटाकर उन्होंने अपना मार्ग चौरस किया। प्रारम्भिक जीवन से 'सरस्वती' के सम्पादन तक उन्हें विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। परन्तु, अपनी ईमानदारी और अटूट कर्त्तव्यपरायणता के कारण वे प्रत्येक संग्राम में विजयी हुए। जब द्विवेदीजी ने रेलवे की नौकरी प्रारम्भ की थी, तब उन्होंने अपने कुछ आदर्श बनाये थे। उन्होंने स्वयं लिखा है : "... मैंने अपने लिए चार सिद्धान्त या आदर्श निश्चित किये । यथा : १. वक्त की पाबन्दी करना, २. रिश्वत न लेना, ३. अपना काम ईमानदारी से करना और ४. ज्ञानवृद्धि के लिए सतत प्रयत्न करते रहना ।५ काम करने की लगन और निष्ठा के कारण ही रेलवे मे उनकी शीघ्रता से पदोन्नति होती गई । यही मूल सिद्धान्त उन्होंने साहित्य-सेवा करते हुए भी अपना रखे थे । 'सरस्वती' का सम्पादन-कार्य करते समय भी द्विवेदीजी ने तत्कालीन एवं परवर्ती सम्पादकों के समक्ष कर्तव्यपरायणता का उच्च आदर्श रखा। इसी कारण, 'सरस्वती' को भी लोकप्रियता मिली और द्विवेदीजी सारे हिन्दी-प्रेमियों के लिए पूज्य बन गये । इस कर्त्तव्य के पीछे उन्होंने अपने शरीर की अस्वस्थता की परवाह नहीं की, परन्तु उनके काम में कभी ढीलापन नहीं आया। (ज) समयज्ञता: द्विवेदीजी को काम की ईमानदारी जिस सीमा तक प्रिय थी, उसी सीमा तक वे समय के महत्त्व को भी पहचानते थे। बचपन से ही वक्त की पाबन्दी उनके जीवन में एक महत्त्वपूर्ण गुण बनकर घुल-मिल गई थी। रेलवे की नौकरी करते समय उनकी समयज्ञता से उनके अफसर बड़े प्रसन्न रहते थे । जब द्विवेदीजी ने 'सरस्वती' का सम्पादन अपने हाथों में लिया, तब 'सरस्वती' के समय पर प्रकाशित हो जाने का पूरा 'भार उन्होंने अपने सिर पर ले लिया। उन्होंने स्वयं लिखा है : ___ 'प्रेस की मशीन टूट जाय, तो उसका जिम्मेदार मैं नही। पर कॉपी समय पर न पहुंचे, तो उसका जिम्मेदार मैं हूँ। मैंने अपनी इस जिम्मेदारी का निर्वाह जी-जान होम कर किया। चाहे पूरा-का-पूरा अंक मुझे ही क्यों न लिखना पड़ा हो, कॉपी १. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'मेरी जीवन-रेखा', 'भाषा : द्वि० स्मृ० अंक, पृ० १२ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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