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________________ १४ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदीजी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व इस प्रकार, आर्यसमाज के युवप्रधान प्रचारात्मक आन्दोलन एवं पाश्चात्त्य विद्वानो द्वारा की गई, भारत के प्राचीन साहित्य की प्रशंसा ने भारतीय जनमानस एवं तयुगीन साहित्य में सांस्कृतिक चेतना की एक अपूर्व लहर दौड़ा दी। सर्वत्र निजी गौरव-भावना ने प्रसार पाया और स्वर्णिम अतीत की भॉति वर्तमान और भविष्य को सँवारने तथा समुज्ज्वल बनाने की दिशा में लोग सचेष्ट हुए। द्विवेदीयुगीन सांस्कृतिक परिस्थिति को हम अपने-आप में विविध प्रभावों के कारण विशृंखलित होते हुए भी अतीतोन्मुखी एव पुनरुत्थानवादी कह सकते है। साहित्यिक पृष्ठभूमि तथा उसका द्विवेदीयुगीन प्रतिफलन : उन्नीसवी शताब्दी के अन्तिम चरण में प्राचीन और नवीन विचारधाराओं का जो संघर्ष सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्तर पर चल रहा था, उसका प्रभाव तत्कालीन साहित्यिक गतिविधियों पर भी पड़ा। फलतः, उस समय साहित्यसेवियों में रीतिभवितकालीन परम्परावादी तथा नवीन विचारभूमि पर विचरण करनेवाले परम्परामुक्त जैसे स्पष्ट ही दो दल हो गये थे। उन दोनों दलों की मूलभूत विशेषताओं को समन्वित कर हिन्दी में समर्थ साहित्यधारा प्रवाहित करनेवाले युगनिर्माता के रूप मे भारतेन्दु हरिचन्द्र ने एक जागरूक साहित्यकार के सारे गुणों को आत्मसात् किया। डॉ० लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय ने लिखा है : __"भारतेन्दु हरिश्चन्द्र दो ऐतिहासिक युगों के सन्धिस्थल पर खड़े थे, इसलिए उनका ध्यान प्राचीन और नवीन दोनो की ओर गया। उन्होंने न तो प्राचीन की उपेक्षा की ओर न उसके मोह में बँधे । साथ ही, उन्होंने न तो नवीन का अन्धानुकरण किया और न उससे आशंकित ही रहे। उन्होने जो कुछ देखा,आँखें खोलकर देखा और उनकी साहित्यिक प्रतिभा ने मणिकांचन-संयोग उपस्थित किया।"१ ___ भारतेन्दु की निजी सर्वतोमुखी प्रतिभा से आलोकित होते हुए भी हिन्दी-साहित्य कई दृष्टियो से अराजकता की स्थिति से उस समय गुजर रहा था। इस युग में साहित्योचित विषय एवं शैली को लेकर जो वैषम्य था, उससे कही अधिक प्रबल विवाद भाषा-विषयक था । श्री सिद्धिनाथ तिवारी ने उस समय की दशा की चर्चा इन शब्दों में की है : "१९वीं शताब्दी का गोष्ठी-साहित्य समुचित मनोवृत्ति लिये भाषा, भाव और नियम और विधान में कुछ आदर्श नहीं रख सका । उर्दू, बँगला, मराठी आदि - प्रदेशों के हिन्दी-भाषाभाषी अपने-अपने स्थानीय साँचे में ही हिन्दी को ढालने का प्रयत्न कर रहे थे । नये लेखकों द्वारा व्याकरण की अवहेलना कम नहीं थी। इनके १. डॉ० धीरेन्द्र वर्मा : 'हिन्दी-साहित्यकोश', भाग २, पृ० ३८३ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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