SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्विवेदी युग की पृष्ठभूमि एवं परिस्थितियाँ [ ९ सामने आये । सामाजिक असमानता, जातिवर्ण-भेद, बालविवाह, विधवाओं की दुरवस्था आदि के विरुद्ध इस युग में आर्यसमाज, प्रार्थना समाज आदि संस्थाओ के संरक्षण में सुधारपरक आन्दोलन चल रहा था । भारतीय आदर्शो तथा नैतिकता की रक्षा के साथ बुद्धिवादी समाजसुधारक - समुदाय सामाजिक-धार्मिक परिवर्तन लाने के लिए कार्यशील था । अन्य सामाजिक उत्थानों के साथ-ही-साथ नारियों की दशा में सुधार इस युग की एक महान् उपलब्धि है । आर्यसमाज आदि के प्रयत्न - स्वरूप जिन सामाजिक सुधारों का स्थायी प्रभाब तत्कालीन साहित्य पर पड़ा, उनमे नारी जागरण का सर्वाधिक महत्त्व है । डॉ० लक्ष्मीनारायण गुप्त के अनुसार : "आर्यसमाज के प्रचार ने 'एक और बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य किया, जिसका प्रभाव साहित्य पर पड़ा। वह है नारी जागरण का कार्य । लगभग ३०० वर्षो से १९वीं शती के अन्त तक हिन्दी - साहित्य एवं काव्य मे स्त्रियो का बड़ा हीन चित्रण किया गया था । नायिका भेद के जाल से जकड़कर उन्हे एकमात्र उपभोग्य सामग्री बना रखा था । उनका वर्णन प्रोषितपतिका, अभिसारिका, अज्ञातयौवना, वासकसज्जा आदि के रूप मे ही मिलता था । अन्धविश्वास और रूढिवाद में उलझे हुए हिन्दूसमाज ने उन्हें पूर्णतया घर की चहारदीवारी मे बन्द कर रखा था । वे अशिक्षित थी, तिरस्कृत थीं और पति के कार्यो मे हस्तक्षेप करने एवं परामर्श देने का उन्हें अधिकार न था । आर्यसमाज ने स्त्रियों की ऐसी दशा देखकर उनका भी उद्धार किया, उन्हें अर्धागिनी का पद दिलाया, परदा प्रथा के गर्त से बाहर निकाला, उन्हे शिक्षित किया और सीता एव सावित्री का आदर्श उनके सन्मुख रखा । "" नारियों के इस जागरण का प्रभाव द्विवेदीयुगीन साहित्य पर पड़ा। परम्परित नारी-शोभा की काव्यगत अभिव्यंजना के विरुद्ध स्वयं पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी ने भी आवाज उठाई है। इसी भाँति, अन्यान्य क्षेत्रों मे हो रहे सामाजिक सुधारों की ओर भी तत्कालीन साहित्यसेवी जागरूक थे । राष्ट्रीय चेतना का विकास करने के महान् उद्देश्य से भारतीयीकरण की सामाजिक नीति को साहित्य में भी प्राश्रय मिला । जैसे-जैसे समाज का नेतृत्व आभिजात्य वर्ग के हाथों से निकलकर उदित हो रहे मध्यमवर्ग के हाथों में आ रहा था, देशव्यापी सामाजिक सुधारवादिता भी साहित्य में मुखरित हो रही थी 1 आर्थिक परिस्थितियाँ : व्यापारी बनकर आये अँगरेजो ने जब भारत के शासन को अपने अधीन कर लिया, तब स्वतन्त्र व्यापार की आर्थिक नीति का सूत्रपात हुआ । भारत में - १. डॉ० ल० ना० गुप्त : 'हिन्दी भाषा और साहित्य को आर्यसमाज की देन', पृ० १९२ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy